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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रामायण के सबूत लंका मे

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आज भी लंका में मौजूद है भगवान श्री राम और रावण के बीच हुवे युद्ध और हनुमान जी के लंका जलाने के प्रमाण   (श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय )-- आज भी मौजूद है "लंका" में रावण के महल, मन्दिर और  गुफाएं, आज भी लंका में "रामायणकालीन" स्थल मौजूद है । दशहरा  अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान श्री राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।  श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका "पुरातात्विक" और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, रावण के हवाई अड्डे, रावण का शव, रावण का महल और ऐसे 50 रामायणकालीन स्थलों की खोज करने का दावा ‍किया गया है। बाका

मंदिर जाना क्यों जरूरी

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हमे मन्दिर क्यों जाना चाहिए?  मित्रो अवश्य पढ़ें यह अति दुर्लभ प्रस्तुति है। मंदिर जाना इसलिए जरूरी है कि वहां जाकर आप यह सिद्ध करते हैं कि आप देव शक्तियों में विश्वास रखते हैं तो देव शक्तियां भी आपमें ...आपने अक्सर हमारे बड़े-बुजूर्गो को कहते हुए सुना होगा कि रोज मंदिर जाना चाहिए। दरअसल मंदिर जाने की परंपरा किसी एक कारण से नहीं बनाई गई नहीं बल्कि इसके पीछे कई कारण है।  सबसे पहला कारण है भगवान, हम इस मनोभाव से भगवान की शरण में जाते हैं कि हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी, जो बातें हम दुनिया से छिपाते हैं वो भगवान के आगे बता देते हैं, इससे भी मन को शांति मिलती है, बेचैनी खत्म होती है।  दूसरा कारण है वास्तु, मंदिरों का निर्माण वास्तु को ध्यान में रखकर किया जाता है। हर एक चीज वास्तु के अनुरूप ही बनाई जाती है, इसलिए वहां सकारात्मक ऊर्जा ज्यादा मात्रा में होती है। तीसरा कारण है वहां जो भी लोग जाते हैं वे सकारात्मक और विश्वास भरे भावों से जाते हैं सो वहां सकारात्मक ऊर्जा ही अधिक मात्रा में होती है।  चौथा कारण है मंदिर में होने वाले नाद यानी शंख और घंटियों की आवाजें, ये आवाजें वा

रावण के जन्म का रहस्य

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रावण का जन्म और नामकरण लोग लंकापति रावण को अनीति, अनाचार, दंभ, काम, क्रोध, लोभ, अधर्म और बुराई का प्रतीक मानते हैं और उससे घृणा करते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यहां यह है कि दशानन रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो उसके गुणों की अनदेखी नहीं की जा सकती। रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। रावण एक प्रकांड विद्वान था। वेद-शास्त्रों पर उसकी अच्छी पकड़ थी और वह भगवान भोलेशंकर का अनन्य भक्त था। उसे तंत्र, मंत्र, सिद्धियों तथा कई गूढ़ विद्याओं का ज्ञान था। ज्योतिष विद्या में भी उसे महारथ हासिल थी। रावण के जन्म का रहस्य - रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य,पद्मपुराण तथा श्रीमद्‍भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने अशुभ सम

5 योद्धा, जो रामायण और महाभारत युद्ध में रहे मौजूद

🕉️🚩🌺🌹🙏🚩🕉️🌺🌹🙏🚩 🕉️🚩वो 5 योद्धा, जो रामायण से लेकर महाभारत तक के युद्ध में रहे मौजूद   🚩🕉️🙏🌹🌺🚩🕉️🙏🌹🌺🚩 🚩🕉️रामायण और महाभारत के युद्धकाल में प्रस‍िद्ध योद्धाओं का नाम हम सभी जानते हैं परंतु इन दोनों युद्धों में जो समान रूप से मौजूद रहे आज उन पांच योद्धाओं के नाम हम आपको बताने जा रहे हैं। रामायण में जहां भगवान राम और रावण के बीच युद्ध हुआ था, वहीं महाभारत काल में पांडवों और कौरवों की बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में 18 दिनों तक भंयकर युद्ध लड़ा गया। रामायण और महाभारत में कुछ ऐसे योद्धा थे जिसमें दोनों नें अपनी भूमिका निभाई। 🕉️🚩परशुराम🚩🕉️ 🕉️🚩परशुराम भगवान शिव के अवतार थे। परशुराम का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था। ब्राह्राण कुल में पैदा होने के बाद भी उनके अंदर क्षत्रियों जैसा गुण था। भगवान परशुराम रामायण और महाभारत काल दोनों में उपस्थित थे। परशुराम ने रामायण काल में सीता स्वयंवर में धनुष टूटने के बाद भगवान राम को चुनौती दी थी। वहीं महाभारत काल में परशुराम जी ने कर्ण और पितामह भीष्म को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी दी थी। 🚩🕉️भगवान हनुमान🕉️🚩 🕉️🚩हनुमानजी को कलयुग मे

सेकुलर_हिन्दू कौन

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#सेकुलर_हिन्दू इसी शुतुरमुर्ग समान हैं   यह रहा इनकी  पहचान "सेक्युलर हिन्दू" होने की 10 पहचान :--- 1. "सेक्युलर हिन्दू" घर में NDTV देखेंगे, Times of India अखबार पढ़ेंगे और इनकी दिखाई हर खबर को 100% सच मान लेंगे....!! 2. "सेक्युलर हिन्दू" इस्लामिक अंडरवर्ल्ड की Guideline के अनुसार काम करने वाले " बॉलीवुड" की फ़िल्में देखेंगे और बॉलीवुड के गद्दार मुल्लों को अपना HERO मान लेंगे....!! 3. ये "सेक्युलर हिन्दू" अपने ग्रुप का नाम संघ के बजाय कोई ब्रिगेड रखेंगे और ये संतो को सेंट (Saint ) कहने में गर्व महसूस करेंगे...!! 4. इन "सेक्युलर हिन्दूओं" को अपनी खुद की मातृ भाषा बोलने में शर्म आएगी और English बोलने में बहुत गर्व महसूस होगा...!! 5. ये "सेक्युलर हिन्दू" हमेशा कहेंगे कि सब धर्मों का भगवान एक ही है। और ये सब धर्म हमें उस एक ही भगवान की और ले जाते हैं। जबकि ये "सेक्युलर हिन्दू"  लोग धर्म की ABCD भी नहीं जानते...!! ना ही कोई धार्मिक किताब पढ़ी होगी..!! 6. ये "सेक्युलर हिन्दू" अक्सर कहेंगे कि आ

कुंभ के 14 अखाड़े, जानें क्या है महत्व

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*कुंभ मेला  : ये हैं कुंभ के 14 अखाड़े, जानें क्या है महत्व🙏🏻🚩👇🏻👇🏻* 🚩कुंभ का मेला विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में से एक है. लाखों की संख्या में लोग इस मेले में शामिल होते हैं. कुंभ का मेला हर 12 वर्षों के अंतराल होता है. लेकिन कुंभ का पर्व हर बार सिर्फ 4 पवित्र नदियों में से किसी एक नदी के तट पर ही आयोजित किया जाता है. जिनमें हरिद्वार में गंगा, उज्जैन की शिप्रा, नासिक की गोदावरी और इलाहाबाद में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है।।🚩 *क्या होते हैं अखाड़े👇🏻👇🏻❓❓* कुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व होता है. अखाड़े शब्द की शुरुआत मुगलकाल के दौर से हुई. अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है, जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है।। *क्या होती है पेशवाई❓❓🚩🙏🏻👇🏻👇🏻👇🏻* जब कुंभ में नाचते-गाते धूमधाम से अखाड़े जाते हैं, तो उसे  पेशवाई कहते हैं. कहा जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे. तब से वही अखाड़े बने हुए थे. लेकिन इस बार एक और अखाड़ा जुड़ गया है, जिस कारण इस बार कुंभ में 14 अखाड़ों की पेशवाई देखने की मिलेगी।।🚩👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 *आइए जानें इन 14

33 कोटि देवतओं का सच

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33 कोटि देवतओं का सच  हिन्दू देवी या देवताओं को 33 कोटि अर्थात प्रकार में रखा गया है और कुछ कहते हैं कि यह सही नहीं है। दरअसल वेदों में 33 कोटि देवताओं का जिक्र किया है। धर्म गुरुओं और अनेक बौद्धिक वर्ग ने इस कोटि शब्द के दो प्रकार से अर्थ निकाले हैं। कोटि शब्द का एक अर्थ करोड़ है और दूसरा प्रकार अर्थात श्रेणी भी। तार्किक दृष्टि से देखा जाए तो कोटि का दूसरा अर्थ इस विषय में अधिक सत्य प्रतीत होता है अर्थात तैंतीस प्रकार की श्रेणी या प्रकार के देवी-देवता। परन्तु शब्द व्याख्या, अर्थ और सबसे ऊपर अपनी-अपनी समझ और बुद्धि के अनुरूप मान्यताए अलग-अलग हो गयीं । वैदिक विद्वानों अनुसार :- (Vidhvano ke Anusar 33 koti devta) वेदों में जिन देवताओं का उल्लेख किया गया है उनमें से अधिकतर प्राकृतिक शक्तियों के नाम है जिन्हें देव कहकर संबोधित किया गया है। दरअसल वे देव नहीं है। देव कहने से उनका महत्व प्रकट होता है। उक्त प्राकृतिक शक्तियों को मुख्‍यत: आदित्य समूह, वसु समूह, रुद्र समूह, मरुतगण समूह, प्रजापति समूह आदि समूहों में बांटा गया हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ जगह पर वैदिक ऋषि इन प्रकृतिक

आप कहाँ के हिन्दू हैं?

आज का ज्वलंत प्रश्न : आप कहाँ के हिन्दू हैं? आपने, 1. चोटियां छोड़ीं 2. पगड़ी छोड़ी, 3. तिलक, चंदन छोड़ा 4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी, 5. यज्ञोपवीत छोड़ा, 6. संध्या वंदन छोड़ा 7. रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा  8. महिलाओं, लड़कियों ने साड़ी छोड़ी, बिछिया छोड़े, चूड़ी छोड़ी , दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग बिन्दी छोड़ी। 9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (अब आया पालती है) 10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी (भाषा) छोड़ी, 11. श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी  12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े 13. सुबह शाम मिलने पर राम राम, राधे कृष्ण छोड़ी 14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े 15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार) अब कोई रीति या परंपरा बची है आपकी? ऊपर से नीचे तक गौर करिये, आप कहां पर हिन्दू हैं? भारतीय हैं, सनातनी हैं, ब्राह्मण हैं, क्षत्रिय हैं, वैश्य हैं या शुद्र हैं। कहीं पर भी उंगली रखकर बता दीजिए कि हमारी परंपरा को मैंने ऐसे जीवित रखा है। जिस तरह से हम धीरे-धीरे बदल रहे हैं, जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे। बौद्धों ने कभी सर मुंड़ाना नहीं छोड़ा। सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया! म

शिवलिंग का रहस्य

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🔱भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे ! भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता हैं। 🔱शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें। 🔱महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं। 🔱शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता... 🔱भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है। 🔱 शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। 🔱तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी। 🔱ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। 🔱जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।.. 🔱 आपको यह जानकर आश्चर्य हो

परशुराम जी से जुड़े रोचक तथ्य

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परशुराम से जुड़े रोचक तथ्य (Parsuram Se jude Tathay) परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है । इन्हें जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ‘जामदग्न्य’ भी कहा जाता है । इनके बारे में कई सारे किस्से बहुत प्रसिद्ध है जैसे उन्होंने पिता के आदेश पर अपनी ही माता को मार दिया था, तो आईये जानते हैं परशुराम जी के जीवन से जुड़े हुए रहस्य । परशुराम ने क्यों मारा अपनी ‘मां’ को (Parsuram ne kyu mara maa ko) भगवान परशुराम अपने पिता के प्रति पूर्ण रुप से समर्पित थे । एक बार उनके पिता उनकी मां से इतने ज्यादा नाराज हो गये कि उन्होंने परशुराम को उसकी हत्या करने का आदेश दिया । परशुराम ने पिता के आदेश का पालन किया और अपनी मां को मार दिया । हालांकि, बाद में अपनी चतुराई से परशुराम अपनी माता का जीवन में लाने में सफल रहे । इस तरह उन्होंने पिता के प्रति अपने समर्पण को प्रमाणित किया । बछड़े के लिए ‘कार्तवीर्य अर्जुन’ का वध बात उस समय की है जब एक कार्तवीर्य नाम के एक राजा हुए करते थे, जो एक बार किसी युद्ध को जीतने के बाद परशुराम जी के पिता जमदग्नि मुनि के आश्रम में रुक गये थे । बाद में जब वह वहां से निकले

भगवान शिव-पार्वती का विवाह

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पुराणों में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बारे में कई बार जिक्र हुआ है। कहा जाता है शिव और पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। आइए जानते हैं कैसे हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह । माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। सभी देवता गण भी इसी मत के थे कि पर्वत राजकन्या पार्वती का विवाह शिव से होना चाहिए। देवताओं ने कन्दर्प को पार्वती की मद्द करने के लिए भेजा लेकिन शिव ने उन्हें अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया। अब पार्वती ने ठान लिया था कि वो विवाह करेंगी तो सिर्फ भोलेनाथ से। शिव को अपना वर बनाने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या शुरू कर दी। उनकी तपस्या के चलते सभी जगह हाहाकार मच गया। बड़े-बड़े पर्वतों की नींव डगमगाने लगी। ये देख भोले बाबा ने अपनी आंख खोली और पार्वती से आवहन किया कि वो किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें शिव ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक तपस्वी के साथ रहना आसान नहीं है। लेकिन माता पार्वती तो अडिग थी, उन्होंने साफ कर दिया था कि वो विवाह सिर्फ भगवान शिव से ही करेंगी। अब पार्वती की ये जिद देख भोलेनाथ पिघल गए और उनसे विवाह करने के लिए राजी हो

प्रभू श्रीराम की मृत्यु का रहस्य

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5114 ईसा पूर्व प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। उनकी मृत्यु के बारे में रामायण के अलावा अन्य रामायण और पुराणों में अलग-अलग वर्णन मिलता है। एक कथा अनुसार, सीता की सती प्रामाणिकता सिद्ध होने के पश्चात सीता अपने दोनों पुत्रों कुश और लव को राम की गोद में सौंपकर धरती माता के साथ भूगर्भ में चली गई। सीता के चले जाने से व्यथित राम ने यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में जल समाधि ले ली। एक अन्य कथा अनुसार, हनुमानजी को अयोध्या में अनुपस्थिति देखकर यमदेव ने नगर में प्रवेश किया और एक संत का रूप धारण कर वे राम के महल पहुंच गए। उन्होंने वहां राम से मिलने का समय ले लिया। जब संत वेश में यम श्रीराम से मिले तो उन्होंने दोनों के बीच की वार्ता को गुप्त रखने के लिए यह शर्त रखी कि यदि हमारे बीच कोई आएगा तो द्वारपाल को मृत्युदंड दिया जाएगा। राम ने वचन दे दिया और हनुमानजी की अनुपस्थिति में लक्ष्मण को द्वारपाल बनाकर खड़ा कर दिया। तब यम ने अपने असली रूप में आकर कहा, प्रभु आपका धरती पर जीवन पूर्ण हो चुका है। अब आपको अपने लोक लौटना चाहिए। तभी इस वार्तालाप के बीच में ही द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए और लक

कन्यादान का वास्तविक अर्थ

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*कन्यादान का वास्तविक अर्थ* -:  कन्यादान शब्द पर समाज में *गलतफहमी पैदा हो गई है*, और अकारण *भ्रांतियां उत्पन्न* की गयी हैं, " समाज को यह समझने की जरूरत है कि *कन्यादान का मतलब संपत्ति दान नही होता* और... *न ही " लड़की " का दान,"* " कन्यादान " का मतलब *"गोत्र दान " होता है*... *कन्या " पिता " का गोत्र छोड़कर " वर " के गोत्र में प्रवेश करती है,* पिता कन्या को अपने *गोत्र से विदा करता* है और उस गोत्र को *अग्नि देव को दान* कर देता है... और *वर अग्नि देव को साक्षी मानकर कन्या को अपना गोत्र प्रदान करता है,अपने गोत्र में स्वीकार करता है इसे " कन्यादान कहते हैं*।                             सभी लोगो तक जानकारी साझा करे व *समाज मे भारतीय संस्कृति व परम्पराओ को लेकर जो भ्रांति उत्पन्न है उसे दूर करने में अपना योगदान दे,भारतीय संस्कृति की रक्षा हेतु निरंतर वर्तमान व भावी पीढ़ी को जागरूक करते रहे*। *देश की तरक्की तभी संभव है *जब संस्कृति जीवित हो*,                🙏🌹🙏 जय सत्य सनातन🚩* *🚩हिन्दुराष्ट्र अनिवार्य🏹* ➖➖➖➖➖➖➖➖ 🙏🚩

रामायण में वर्णित चूडामणि की कथा

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रामचरितमानस में वर्णित,रहस्यमई “चूडामणि” का अदभुत रहस्य !!!!!!! आज हम रामायण में वर्णित चूडामणि की कथा बता रहे है। इस कथा में आप जानेंगे की- कहाँ से आई चूडा मणि ? किसने दी सीता जी को चूडामणि ? क्यों दिया लंका में हनुमानजी को सीता जी ने चूडामणि ? कैसे हुआ वैष्णो माता का जन्म? पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥ भावार्थ:-पूँछ बुझाकर, थकावट दूर करके और फिर छोटा सा रूप धारण कर हनुमान्‌जी श्री जानकीजी के सामने हाथ जोड़कर जा खड़े हुए॥ * मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥ चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥ भावार्थ:-(हनुमान्‌जी ने कहा-) हे माता! मुझे कोई चिह्न (पहचान) दीजिए, जैसे श्री रघुनाथजी ने मुझे दिया था। तब सीताजी ने चूड़ामणि उतारकर दी। हनुमान्‌जी ने उसको हर्षपूर्वक ले लिया॥              चूडामणि कहाँ से आई? सागर मंथन से चौदह रत्न निकले, उसी समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ – १– रत्नाकर नन्दिनी २– महालक्ष्मी रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया ! जब उनसे मिलने के लिए

कर्ण और श्री कृष्ण का संवाद: जिंदगी की चुनौतियां

जब कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा मेरा क्या दोष था उसपर श्रीकृष्ण का जवाब" कर्ण ने कृष्ण से पूछा - मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ? द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था। परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा, क्योंकि उन्हें ज्ञात हो गया की मैं क्षत्रिय हूं। केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था। द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया। माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया भी तो अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए। जो भी मुझे प्राप्त हुआ है,दुर्योधन से ही हुआ है। *तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ? *कृष्ण ने उत्तर दिया: *कर्ण, मेरा जन्म कारागार में हुआ। *जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए थी। *जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मातापिता से दूर किया गया। *तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता

मकर सक्रांति त्यौहार का इतिहास

मकर संक्रांति का पावन त्योहार इस साल जनवरी की 14 तारीख को मनाया जाएगा। माना जाता है कि पौष महीने में सूर्य देव अपने पुत्र यानी शनि देव की राशि मकर में जाते हैं। इस दिन सूर्य देव की पूजा होने के साथ जप, दान व गंगा स्नान का खास महत्व है। सूर्य के मकर राशि में जाने पर सूर्य, बुध, गुरु, चंद्रमा और शनि पांच ग्रहों का मेल होता है। ऐसे में इस शुभ संयोग के चलते इस पावन त्योहार को मनाया जाताइसलिए कहलाई 'मकर संक्रांति'  मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकल कर शनिदेव की राशि में गोचर करते हैं। यह भी कहा जाता है कि वे अपने पुत्र से खुद मिलने पहुंचते हैं। ऐसे में इस समय को बेहद ही खास मानने के साथ 'मकर संक्रांति' के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही इस संक्रांति में सूर्य उत्तरायण होते हैं। माना जाता है कि उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन रात होती है। ऐसे में सर्दी कम होकर गर्मी की शुरूआत होने लगती है।  तो चलिए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़ी कथाएं...   शनिदेव व सूर्य देव से जुड़ी पहली कथा इस शुभ अवसर को लेकर बहुत ही कथाएं परिचित है। श्रीमद्भागवत एवं देव

संतान को दोष न दें..

..संतान को दोष न दें..* 😡 बालक को *'इंग्लिश मीडियम'* में पढ़ाया...  *'अंग्रेजी'* बोलना सिखाया...😡 *'बर्थ डे'* और *'मैरिज एनिवर्सरी'* जैसे जीवन के *'शुभ प्रसंगों'* को *'अंग्रेजी कल्चर'* के अनुसार जीने को ही *'श्रेष्ठ'* मानकर... माता-पिता को *'मम्मा'* और *'डैड'* कहना सिखाया...😡 😂जब *'अंग्रेजी कल्चर'* से परिपूर्ण बालक बड़ा होकर, आपको *'समय'* नहीं देता, आपकी *'भावनाओं'* को नहीं समझता, आप को *'तुच्छ'* मानकर *'जुबान लड़ाता'* है और आप को बच्चों में कोई *'संस्कार'* नजर नहीं आता है, तब घर के वातावरण को *'गमगीन किए बिना'*... या... *'संतान को दोष दिए बिना'*... कहीं *'एकान्त'* में जाकर *'रो लें'*...🧐 *क्योंकि...* पुत्र की पहली वर्षगांठ से ही, *'भारतीय संस्कारों'* के बजाय *'केक'* कैसे काटा जाता है ? सिखाने वाले आप ही हैं...😡 *'हवन कुण्ड में आहुति'* कैसे डाली जाए...  *'मंदिर, मंत्र, पूजा-पाठ, आदर-सत्कार के संस्कार दे

1.8% Vs. 7.8%......हिंदुत्व के लिए खतरनाक स्थिति

*प्रशासक समिति ✊🏻🚩* कहीं हिंदू अपनी बरबादी की दास्तां खुद तो नहीं लिख रहे. यह विषय बहुत गंभीर चिंतन का है सभी हिंदुओं को अपनी स्थिति सुधारने के लिए तेजी से इसे बदलना होगा.  आज हिंदुओं की जन्मदर 1.7 परसेंट है और मुसलमानों की से 7.8%.  आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि आने वाले 20/ 30 सालों बाद भारत की क्या स्थिति होगी *😢 यदि १-१ बच्चों का यह ट्रेंड नहीं सुधारा गया, तो हमारा हिन्दू समाज, सिमटते-सिमटते, पारसियों के परिवार जितना रह जायेगा!!!* *🙏🏻 मरणासन्न परिस्थिती 🙏*              *विडंबना* ❇️ आने वाले २०-२५ वर्षो में , घरों से कुछ रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। भाई, भाभी, देवर, देवरानी, जेठ, जेठानी, काका, काकी सहित अनेक रिश्ते हिन्दूओं के घरों से समाप्त हो जाएंगे। ❇️बस ढाई तीन लोगों के परिवार बचेंगे, न हिम्मत देने वाला बड़ा भाई होगा, न तेज तर्राट छोटा भाई होगा,न घर मे भाभी होगी, न कोई छोटा देवर होगा, बहु भी अकेली होगी, न उसकी कोई देवरानी होगी न जेठानी। कुल मिलाकर इस एक बच्चा फैशन और सिर्फ मैं - मैं की मूर्खता के कारण ... ❇️ छोटे परिवार के कारण, मुस्लिमों के अत्याचारों को ज़बाब नहीं