संदेश

ढाई अक्षर

✍🏻✍🏻.. काफी बरसों पहले पढ़ा था..! पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।      ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय॥        अब पता लगा है कि, ढाई अक्षर हैं क्या ? तब से मन शांत हो गया. ``` 2½ अक्षर के ‘ब्रह्मा’ और, ढाई अक्षर की ‘सृष्टि’. ``` ``` ढाई अक्षर के ‘विष्णु’ और ढाई अक्षर की ‘लक्ष्मी’. ``` ``` ढाई अक्षर की ‘दुर्गा’ और ढाई अक्षर की ‘शक्ति’. ``` ``` ढाई अक्षर की ‘श्रद्धा’ और ढाई अक्षर की ‘भक्ति’. ``` ``` ढाई अक्षर का ‘त्याग’ और ढाई अक्षर का ‘ध्यान’. ``` ``` ढाई अक्षर की ‘इच्छा’ और ढाई अक्षर की ‘तुष्टि’. ``` ``` ढाई अक्षर का ‘धर्म’ और ढाई अक्षर का ‘कर्म’. ``` ``` ढाई अक्षर का ‘भाग्य’ और, ढाई अक्षर की ‘व्यथा’. ``` ``` ढाई अक्षर का ‘ग्रन्थ’ और ढाई अक्षर का ‘सन्त’.``` ``` ढाई अक्षर का ‘शब्द’ और ढाई अक्षर का ‘अर्थ’. ``` ``` ढाई अक्षर का ‘सत्य’ और ढाई अक्षर की ‘मिथ्या’. ``` ``` ढाई अक्षर की ‘श्रुति’ और ढाई अक्षर की ‘ध्वनि’. ``` ``` ढाई अक्षर की ‘अग्नि’ और ढाई अक्षर का ‘कुण्ड’. ``` ``` ढाई अक्षर का ‘मन्त्र’ और ढाई अक्षर का ‘यन्त्र’. ``` ``` ढाई अक्षर की ‘श्वांस’ और ढाई अक्षर के ‘प्राण’.

51 शक्तिपीठों का संक्षिप्त विवरण

चित्र
51 शक्तिपीठों का संक्षिप्त विवरण हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्‍व है। इन्‍हीं पुराणों में वर्णन है माता के शक्‍तिपीठों का भी है। पुराणों की ही मानें तो जहांजहां  देवी सती के अंग के टुकड़े वस्‍त्र और गहने गिरे वहां वहां मां के शक्‍तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं। आइए जानें कहांकहां हैं ये शक्तिपीठ 1. किरीट शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। इस स्थान पर सती के 'किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)' का निपात हुआ था। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं। 2. कात्यायनी पीठ वृन्दावन मथुरा में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं। यहाँ माता सती 'उमा' तथा भगवन शंकर 'भूतेश' के न

दीपावली - मे लक्ष्मी व गणेश की पूजा क्यो?

चित्र
दीपावली - मे लक्ष्मी व गणेश की पूजा क्यो??? अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? राम और सीता की पूजा क्यों नही?  दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं? इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।आज की शब्दावली के अनुसार कुछ ‘लिबरर्ल्स लोग’  युवाओं और बच्चों के मस्तिष्क में यह प्रश्न डाल रहें हैं कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर वह बच्चों का ब्रेनवॉश कर रहे हैं कि सनातन धर्म और सनातन त्यौहारों का आपस में कोई तारतम्य नहीं है।सनातन धर्म बेकार है।आप अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें। दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग

हिंदू कौन है

हिंदू कौन है  हिंदू शब्द की उत्पत्ति कुछ लोग बताते है कि अरबी,फ़ारसी में हिन्दू का मतलब ये लिखा है, ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में ये लिखा है लेकिन हिंदू शास्त्रो में क्या लिखा है ये लोग उसको नही मानते है ऐसे लोग हिन्दू विरोधी देश विरोधी मानसिकता रखते है और इनकी जड़े मुस्लिम और ईसाईयों द्वारा सींची जाती है। हिन्दू की उतपत्ति और अर्थ  हिन्दू कौन है, क्या आप जानते है, नहीं जानते हैं तो पढ़ें... -----------------------------------------------------  "हिन्दू" शब्द की खोज   "हीनं दुष्यति इति हिन्दूः से हुई है।” अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं। 'हिन्दू' शब्द, करोड़ों वर्ष प्राचीन, संस्कृत शब्द से है! यदि संस्कृत के इस शब्द का सन्धि विछेदन करें तो पायेंगे ....  हीन+दू = हीन भावना + से दूर  अर्थात जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे, मुक्त रहे, वो हिन्दू है ! हमें बार-बार, सदा झूठ ही बतलाया जाता है कि हिन्दू शब्द मुगलों ने हमें दिया, जो "सिंधु" से "हिन्दू" हुआ l हिन्दू शब्द की वेद से ही उत्पत्ति है ! जानिए, कहाँ से आया हिन्दू शब्द, औ

ईश्वर और अल्लाह एक नहीं है

ईश्वर और अल्लाह एक नहीं है! इस भेद को मेरे सभी मित्र समझे,  आशा करता हूं आपको अच्छा लगेगा... नास्तिक होना आपका निजी विचार हो सकता हैं, लेकिन यदि आप टारगेट केवल सनातन को बनाते हैं तो आप नास्तिक नहीं नीच हैं।  01. ईश्वर सर्वव्यापक (Omnipresent) है। अल्लाह सातवें आसमान पर है! 02. ईश्वर सर्वशक्तिमान (Omnipotent) है, वह कार्य करने में किसी के बाध्य नहीं है। अल्लाह को फरिश्तों, जिन्नों की सहायता लेनी पड़ती है! 03. ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है,  अल्लाह केवल कयामत के दिन ही न्याय करता है और वह भी उनका जो कब्रो में दफनाएं गए है! 04. ईश्वर दुष्टों के लिए क्षमाशील नहीं  है, वह दुष्टों को उनके कर्मोनुसार दण्ड देता है। अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों को क्षमा कर देता है, (इस्लाम कबूल और मुसलमान बनने पर) मुसलमान बनने वालों के पाप को माफ़ कर देता है! 05. ईश्वर कहता है,"मनुष्य बनों",  "मनुर्भव जनया दैव्यं जनम् -ऋग्वेद १०.५३.६. अल्लाह कहता है मुसलमान बनो,  सूरा-२, अलबकरा पारा-१, आयत-१३४,१३५,१३६ 06. ईश्वर सर्वज्ञ हैं, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालो

श्राद्ध में खीर क्यों

🔶 श्राद्ध में खीर क्यों 🔷 जनिये "खीर" का वैज्ञानिक कारण और महत्व...... हमारी हर प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं । अज्ञानता का नहीं...... हम सब जानते है की मच्छर काटने से मलेरिया होता है वर्ष मे कम से कम 700-800 बार तो मच्छर काटते ही होंगे अर्थात 70 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते लाख बार मच्छर काट लेते होंगे । लेकिन अधिकांश लोगो को जीवनभर में एक दो बार ही मलेरिया होता है ।सारांश यह है की मच्छर के काटने से मलेरिया होता है, यह 1% ही सही है । ध्यान दीजिये .... खीर खाओ मलेरिया भगाओ :- लेकिन यहाँ ऐसे विज्ञापनो की कमी नहीं है, जो कहते है की एक भी मच्छर ‘डेंजरस’ है, हिट लाओगे तो एक भी मच्छर नहीं बचेगा। अब ऐसे विज्ञापनो के बहकावे मे आकर करोड़ो लोग इस मच्छर बाजार मे अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो जाते है । सभी जानते है बैक्टीरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते । जैसे दूध मे दही डालने मात्र से दही नहीं बनाता, दूध हल्का गरम होना चाहिए। उसे ढककर गरम वातावरण मे रखना होता है । बार बार हिलाने से भी दही नहीं जमता । ऐसे ही मलेरिया के बैक्टीरिया को जब पित्त का वातावरण मिलत

कर्ण एक कपटी, नृशंस, कुचक्री और कायर व्यक्ति था।

महाभारत काल के पात्रों में अक्सर कर्ण का महिमामंडन किया जाता है। बहुतों का पसंदीदा पात्र है कर्ण। पर क्या कर्ण वाकई इस योग्य है? कर्ण को अच्छा दिखाने के पीछे यही सोच काम करती है कि बेचारे को उसकी माँ ने बचपन में ही त्याग दिया था। यह एक अन्याय अवश्य हुआ है कर्ण के साथ। पर क्या इसके कारण किसी का पापी बनना न्यायसंगत माना जा सकता है? आज अगर कोई लावारिस हो, बचपन में उसकी माँ ने उसे कूड़े में फेंक दिया हो, और वह बड़ा होकर ताकत हासिल करने के बाद किसी स्त्री को भरे बाजार नंगा करे, किसी गुंडे का दाहिना हाथ बन जाये तो क्या आपके मन में उसके प्रति दया की भावना जन्म लेगी?  शुरू से बात करते हैं।  जनश्रुति है कि कौरवों (पांडव भी कौरव ही थे) के गुरु द्रोण ने कर्ण का गुरु बनने से मना कर दिया था। जबकि महाभारत ग्रन्थ में लिखा है कि जब भीष्म ने द्रोण को कुरु कुमारों का शिक्षक नियुक्त किया और द्रोण ने गुरुकुल की स्थापना की तो वहाँ कौरवों के अतिरिक्त वृष्णि और अंधक (यादव वंश), अनेक देशों के कुमार और राधानन्दन कर्ण ये सब द्रोण के पास शिक्षा लेने आए। कर्ण सदा अर्जुन से बैर रखता और दुर्योधन के साथ मिलकर पांडवों