36 यक्षिणियां

यक्षिणी :

पुराणों में उल्लिखित हैं भगवान शिव की 32 दासियां, जिनकी साधना करने से मिलती हैं अपार शक्तियां और मिलता है हर परेशानी का हल.

36 यक्षिणियां और उनसे संबंधित मंत्रों का उल्लेख किया गया है, इनमें से 4 यक्षिणियां पूरी तरह गोपनीय हैं। इन 4 गुप्त यक्षणियों के विषय में कोई नहीं जानता लेकिन अन्य 32 से संबंधित कुछ विशेष मंत्र हैं, जिनका विधि-विधान से उच्चारण करने से मानव जीवन की समस्त परेशानियां हल हो सकती हैं।

मान्यताओं के अंतर्गत भिन्न-भिन्न लोकों की अवधारणा को अपनाया गया है। इन सभी लोकों में देवी-देवताओं का वास होता है और मृत्युलोक यानि की धरती से इन सभी की दूरी अलग-अलग है। इस आधार पर यह माना गया है कि जो लोक पृथ्वी के सबसे नजदीक है, उसके देवी-देवताओं की पूजा करने से जल्दी फल प्राप्त होता है।इन सभी लोकों में विष्णु लोक सबसे ऊपर है और निचला लोक यक्ष-यक्षणियों और अप्सराओं का है। इसलिए यह कहना कदापि गलत नहीं है कि यक्ष-यक्षणियों की साधना करने का फल अपेक्षाकृत जल्दी मिलता है, क्योंकि यह पृथ्वी लोक के बहुत नजदीक है।



इससे पहले हम आपको उन विशेष मंत्रों और संबंधित यक्षणियों के बारे में बताएं, हम आपकी उस जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करते हैं जिसका संबंध यक्षणियों के अस्तित्व हैं। हम आपको बताते हैं कि आखिर ये यक्षिणियां हैं कौन।

भगवान शिव की दासियों को यक्षिणी कहा गया है, पुराणों में 36 यक्षिणियों का उल्लेख मिलता है लेकिन उनमें से 4 पूरी तरह गुप्त हैं.... उनके विषय में कोई नहीं जानता। अन्य 32 यक्षिणीयों के विषय में हम यहां बात कर रहे हैं। यक्षिणी, जिनका शाब्दिक अर्थ होता है जादू की ताकत। ये आदिकाल से संबंधित रहस्यमय जातियां हैं, जिनके बारे में ज्यादा सुना या कहा नहीं गया।

देवताओं के बाद अगर दैवीय ताकतों का उल्लेख होता है तो वे यक्ष या यक्षिणियां ही हैं।

सूर सुंदरी यक्षिणी

32 यक्षिणियों में सबसे पहला नाम है सूर सुंदरी यक्षिणी का। 'ॐ ह्रीं आगच्छ सुर सुंदरी स्वाहा”, इस मंत्र का उच्चारण घर के एकांत में किया जाता है। गुग्गल धूप, सफेद चंदन के जल से अर्घ्य देकर तीनों संध्याओं में यह मंत्र उच्चारित किया जाता है। इस मंत्र का जाप एक महीने की अवधि तक किया जाना चाहिए।

मनोहारिणी यक्षिणी

'ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा’, यह मनोहारिणी यक्षिणी मंत्र है, जिसकी साधना रात के अंधेरे में करीब एक माह तक होती है। अगर-तगर की धूप में इस यक्षिणी की साधना होती है। ऐसा माना जाता है कि यह सोने की मुद्राएं प्रदान करती है।

कनकावती यक्षिणी

ॐ ह्रीं कनकावती मैथुन प्रिये आगच्छ-आगच्छ स्वाहा' , इस मंत्र का जाप वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूरी तरह एकांत में किया जाता है। यह साधन मांस-मदिरा के बिना अधूरी है।

कामेश्वरी यक्षिणी

'ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा’, यह साधना अपने शयन कक्ष में ही होती है। इसके लिए आपको एकांत की जरूर है और एक बात ध्यान रहे कि मंत्र जाप करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर ही हो। यह यक्षिणी आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण करती है।

रतिप्रिया यक्षिणी

अपने एकांत कमरे में रतिप्रिया यक्षिनी का चित्र लगाकर ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ रतिप्रिये स्वाहा’ मंत्र का जाप करें। यह साधना रात्रि के अंधेरे में ही की जानी चाहिए। आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पद्मिनी यक्षिणी

एक महीने तक हर रात ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ पद्मिनी स्वाहा’ का जाप करते रहें। यह साधना पूर्ण होते ही आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।

नटी यक्षिणी

नटी यक्षिणी की साधना अशोक के पेड़ के नीचे बैठकर की जाती है ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ नटि स्वाहा’, मछली, मदिरा और अन्य मांस की बली के बिना यह साधना अधूरी है। एक महीने के पश्चात आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

अनुरागिणी यक्षिणी

घर के एकांत स्थान पर बैठकर पूरे एक महीने तक ‘ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ-आगच्छ स्वाहा’ मंत्र के साथ यह साधना की जाती है। महीने के अंत में आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

विचित्रा यक्षिणी

वटवृक्ष के नीचे बैठकर चंपा के फूलों के प्रयोग से विचित्रा यक्षिणी की साधना ‘ॐ ह्रीं विचित्रे चित्र रूपिणि मे सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा’ मंत्र के सहारे की जाती है। एक महीने के पूजन के बाद आपकी इच्छा पूर्ण होती है और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।

विभ्रमा यक्षिणी

‘ॐ ह्रीं विभ्रमे विभ्रमांग रूपे विभ्रमं कुरु रहिं रहिं भगवति स्वाहा’ मंत्र के साथ विभ्रमा यक्षिणी साधना संपन्न करें। यह साधना श्मशान भूमि पर ही की जाती ह, अगर यह यक्षिणी प्रसन्न हो जाएं तो यह ताउम्र आपका भरण-पोषण करेंगी।

विशाल यक्षिणी

मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं विशाले स्वाहा, यह साधना चिंचा पेड़ के नीचे की जाती है। जिसके संपन्न होने के बाद दिव्य रसायन की प्राप्ति होती है।

जनरंजिनी यक्षिणी

मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं जनरंजिनी स्वाहा।' यह यक्षिणी आपके हर दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकती है। यह साधना कदम्ब के पेड़ के नीचे ही संपन्न की जा सकती है।

भीषणी यक्षिणी
मंत्र- ॐ ऐं महानाद भीषणीं स्वाहा। , यह साधना किसी चौराहे पर बैठकर की जाती है, आपके जीवन के सभी विघ्न दूर होंगे

।हंसी यक्षिणी

मंत्र- 'ॐ हंसी हंसाह्वे ह्रीं स्वाहा।' यह साधना घर के एकांत में की जाती है, जिसके सिद्ध होने के बाद आपको जमीन में गड़े खजाने को देखने की शक्ति मिल जाती है।

मदना यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगे देहि देहि श्री: स्वाहा’, यह साधना राजद्वार पर होती है, जिसके बाद अदृश्य होने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।

घंटाकर्णी यक्षिणी

मंत्र- ॐ ऐं पुरं क्षोभय भगति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा’, एकांत स्थान पर घंटा बजाते हुए इस मंत्र का जाप किया जाता है। इससे वशीकरण की शक्ति प्राप्त होती है।

कालकर्णी यक्षिणी

मंत्र- ॐ हुं कालकर्णी ठ: ठ: स्वाहा। यह साधना एकांत में होती है, यह यक्षिणी शत्रु का स्तंभन कर ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

महाभया यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ ह्रीं महाभये हुं फट्‍ स्वाहा’, यह साधना श्मशान में की जाती है जो अमरता का वरदान देती है

माहेन्द्री यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ माहेन्द्री कुलु कुलु हंस: स्वाहा’, यह साधना तुलसी के पौधे के मजदीक बैठकर की जाती है। यह आपको अनेक सिद्धियां प्रदान करती है।

शंखिनी यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ शंख धारिणे शंखा भरणे ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा’, यह साधना प्रात: काल एकांत में बैठकर की जाती है जो आपकी हर इच्छा पूर्ण करती है।

श्मशाना यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ द्रां द्रीं श्मशान वासिनी स्वाहा’ यह साधना श्मशान में होती है जो मनुष्य को गुप्त धन का ज्ञान देती है।

वट यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ श्रीं द्रीं वट वासिनी यक्षकुल प्रसूते वट यक्षिणी एहि-एहि स्वाहा’, यह साधना वट वृक्ष के नीचे होती है जो आपकी हर इच्छा पूर्ण करती है।

विकला यक्षिणी

मंत्र- 'ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्वाहा' , यह साधना पर्वत और कंदराओं के बीच की जाती है जो मनुष्य की हर इच्छा पूर्ण करती है।

लक्ष्मी यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महाल्क्ष्म्यै नम:’, एकांत में की गई सफल साधना भंडार भरती है।

मदन मेखला यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ क्रों मदनमेखले नम: स्वाहा’, यह साधना एकांत में होती है जो साधक को दिव्य दृष्टि प्रदान करती है।

चन्द्री यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ ह्रीं चंद्रिके हंस: स्वाहा’, यह साधना पूर्ण करने से मनुष्य को अभिष्ट शक्तियां प्राप्त होती हैं।

स्वर्णरेखा यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ वर्कर्शाल्मले सुवर्णरेखा स्वाहा’, एकांत वन में स्थित शिव मंदिर में बैठकर यह साधना की जाती है एक महीने की साधना के पश्चात धन, वस्त्र और आभूषणों की प्राप्ति होती है।

प्रमोदा यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ ह्रीं प्रमोदायै स्वाहा।' घर के एकांत स्थान पर यह साधना की जाती है। एक महीने की साधना के बाद निधि का दर्शन होता है।

नखकोशिका यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ ह्रीं नखकोशिके स्वाहा’, एकांत वन में की गई यह साधना आपकी इच्छा को पूरा करती है।

भामिनी यक्षिणी

मंत्र- ‘ॐ ह्रीं भामिनी रतिप्रिये स्वाहा’, ग्रहण काल में इस मंत्र का जाप किया जाता है। यह साधना पूर्ण होने के बाद व्यक्ति को अदृश्य होकर गड़ा धन दिखाई देता है।

पद्मिनी यक्षिणी

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ पद्मिनी स्वाहा', यह साधना शिव मंदिर में की जाती है। साधक को धन व ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

स्वर्णावती यक्षिणी

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ स्वर्णावति स्वाहा’, वटवृक्ष के नीचे साधना की जाती है तथा अदृश्य धन देखने की शक्ति प्रदान करती है

इन 32 यक्षिणियों की सिद्धि से साधक को क्या लाभ मिलता है?

सबसे पहले, साधक के जीवन में दुर्बल ऊर्जा का क्षय और प्रबल ऊर्जा का उदय होता है। यह परिवर्तन इतना सूक्ष्म होता है कि बाहर वाले इसे संयोग समझते हैं, पर अनुभवी साधक जानता है कि उसकी चेतना किसी अदृश्य शक्ति द्वारा संरक्षित हो रही है। यक्षिणी साधना का पहला प्रभाव साधक की मानसिक शक्ति और आकर्षण पर पड़ता है। व्यक्तित्व में ऐसी चमक आ जाती है कि विरोधी धीरे-धीरे स्वतः ही परास्त होने लगते हैं।

दूसरा प्रभाव साधक की इच्छा–शक्ति पर दिखाई देता है। तांत्रिक परंपरा में इसे “संकल्प–सिद्धि” कहा गया है—अर्थात जो बात साधक मन में ठान ले, वह धीरे-धीरे वास्तविकता का रूप लेती जाती है। 32 यक्षिणियों में से कुछ को कामना-पूर्ति, कुछ को वश्यता, कुछ को धन–लाभ और कुछ को सुरक्षा–कवच प्रदान करने वाली शक्तियों के रूप में वर्णित किया गया है। जब साधक इन ऊर्जाओं से एक-एक कर जुड़ना शुरू करता है, तभी उसका भाग्य भी पुनर्निर्मित होने लगता है।

तीसरा और बड़ा प्रभाव है अलौकिक संरक्षण। तंत्र में कहा गया है कि यक्षिणी साधक के चारों ओर एक अदृश्य रक्षक मंडल बना देती है। यह मंडल न केवल नकारात्मक शक्तियों, ईर्ष्या, नजर और शत्रु-प्रभावों को दूर रखता है, बल्कि साधक को ऐसे संकटों से निकालता है जिनसे सामान्य मनुष्य टूट जाता है। यह संरक्षण बहुत सूक्ष्म होता है—कभी एक मजबूत निर्णय के रूप में, कभी किसी अदृश्य चेतावनी के रूप में, और कभी किसी बड़े संकट से अचानक बच जाने के रूप में।

चौथा लाभ साधक के आकर्षण, व्यक्तित्व और वाणी-शक्ति पर पड़ता है। जिन साधकों ने 32 यक्षिणी साधना के क्रम को पूर्ण किया है, उनके शब्द अनायास ही प्रभावशाली हो जाते हैं। लोग उनकी बातों में एक अदृश्य शक्ति महसूस करते हैं। यह वही ऊर्जा है जिसे प्राचीन ग्रंथ “यक्षिणी की कृपा” कहते हैं।

पाँचवा और सबसे अद्भुत प्रभाव है भाग्य-चक्र का तेज गति से घूमना। यह ऊर्जा साधक के जीवन में अकारण विलंब, रुकावट, अटकी परिस्थिति और दुर्भाग्यों को हटाती है। चाहे साधक व्यापार करे, आध्यात्मिक कार्य करे या पारिवारिक जीवन में हो—उसे हर दिशा में गति और सफलता मिलती है।

32 यक्षिणी सिद्धि का सार यही है कि यह साधक की चेतना को सूक्ष्म लोकों से जोड़ देती है।
साधक की प्रार्थना केवल शब्द नहीं रहती, बल्कि एक ऐसी शक्ति बन जाती है जो ब्रह्मांड में तरंगें पैदा करती है। यही कारण है कि तंत्र–शास्त्र में 32 यक्षिणियाँ अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली मानी गई हैं।

इस साधना का मार्ग अत्यंत सरल भी नहीं है और न ही सभी के लिए खुला है। जो साधक अपने मन को संयम, सत्य, निष्ठा और शुद्धता के माध्यम से साध लेता है, वही इन शक्तियों के संपर्क में आता है। और एक बार संपर्क स्थापित हो जाए, तो साधक का जीवन साधारण नहीं रहता—वह अपने भाग्य का निर्माता बन जाता है।

साभार: सोशल मीडिया और कामाख्या तंत्र विद्या

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सतीश बंसल

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