🌸 शरीर त्यागने के बाद जीव की 4 गतियाँ 🌸
शास्त्रों (वेद, उपनिषद, गीता, पुराण) में वर्णन है कि जब जीव शरीर त्यागता है तो उसके सामने चार मुख्य मार्ग होते हैं 👇
1. सद्योमुक्ति (तुरंत मुक्ति)
🔹 जो महात्मा जीवन में ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, वे अपने संचित व क्रियमाण कर्मों को जला देते हैं।
🔹 प्रारब्ध कर्म समाप्त होते ही जब वे शरीर त्यागते हैं, तो सूक्ष्म और कारण शरीर भी साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
🔹 वे तुरंत ब्रह्म में लीन हो जाते हैं – जैसे घट का आकाश टूटकर महाकाश में मिल जाता है।
📖 वेद कहता है – “न स पुनरावर्तते, अनावृत्ति शब्दात्”
👉 ऐसा महात्मा फिर जन्म नहीं लेता।
2. देवयान-गति (उत्तरायण-मार्ग)
🔹 यह मार्ग सामान्य जीवों का नहीं, योगियों का है।
🔹 ध्यान-धारणा और समाधि से ब्रह्मानुभूति प्राप्त योगी जब शरीर त्यागते हैं, तो देवताओं के सहारे वे ब्रह्मलोक तक जाते हैं।
🔹 वहां भोग करके अंततः ब्रह्मलोक से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
📖 गीता ८.२४ –
“अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः॥”
👉 योगी देवयान मार्ग से जाते हैं, वे फिर लौटकर संसार में जन्म नहीं लेते।
3. पितृयान-गति (दक्षिणायन-मार्ग)
🔹 यह मार्ग सकाम कर्मियों का है – यज्ञ, दान, तपस्या करने वालों का।
🔹 मृत्यु के बाद वे धुएँ से रात्रि, रात्रि से कृष्णपक्ष, कृष्णपक्ष से दक्षिणायन होकर पितृलोक और चन्द्रलोक तक पहुँचते हैं।
🔹 वहाँ अपने पुण्य का भोग करते हैं, और पुण्य समाप्त होने पर पुनः पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।
📖 गीता ८.२५ –
“धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते॥”
👉 इस मार्ग से जाने वाले पुनः संसार में लौटते हैं।
4. जायस्व-म्रियस्व (जन्म-मरण का चक्र)
🔹 यह गति साधारण जीवों की है।
🔹 जीव अपने कर्मों के अनुसार –
✅ शुभ कर्म से देवयोनि
✅ पाप से नरक व दुःखदायी योनि
✅ मिश्रित कर्म से मनुष्य योनि
पाता है।
🔹 यही चौरासी लाख योनियों का जन्म-मरण का अंतहीन चक्र है।
🌼 निष्कर्ष 🌼
👉 मुक्ति का मार्ग केवल ब्रह्मज्ञान और ईश्वरप्रेम है।
👉 सकाम कर्म और साधारण जीवन जीव को पुनर्जन्म में बाँधे रखते हैं।
👉 गीता कहती है – “यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम” – जो मुझे पा लेता है, वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
सीताराम सीताराम 🙏
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव 🚩
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शास्त्रों (वेद, उपनिषद, गीता, पुराण) में वर्णन है कि जब जीव शरीर त्यागता है तो उसके सामने चार मुख्य मार्ग होते हैं 👇
1. सद्योमुक्ति (तुरंत मुक्ति)
🔹 जो महात्मा जीवन में ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, वे अपने संचित व क्रियमाण कर्मों को जला देते हैं।
🔹 प्रारब्ध कर्म समाप्त होते ही जब वे शरीर त्यागते हैं, तो सूक्ष्म और कारण शरीर भी साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
🔹 वे तुरंत ब्रह्म में लीन हो जाते हैं – जैसे घट का आकाश टूटकर महाकाश में मिल जाता है।
📖 वेद कहता है – “न स पुनरावर्तते, अनावृत्ति शब्दात्”
👉 ऐसा महात्मा फिर जन्म नहीं लेता।
2. देवयान-गति (उत्तरायण-मार्ग)
🔹 यह मार्ग सामान्य जीवों का नहीं, योगियों का है।
🔹 ध्यान-धारणा और समाधि से ब्रह्मानुभूति प्राप्त योगी जब शरीर त्यागते हैं, तो देवताओं के सहारे वे ब्रह्मलोक तक जाते हैं।
🔹 वहां भोग करके अंततः ब्रह्मलोक से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
📖 गीता ८.२४ –
“अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः॥”
👉 योगी देवयान मार्ग से जाते हैं, वे फिर लौटकर संसार में जन्म नहीं लेते।
3. पितृयान-गति (दक्षिणायन-मार्ग)
🔹 यह मार्ग सकाम कर्मियों का है – यज्ञ, दान, तपस्या करने वालों का।
🔹 मृत्यु के बाद वे धुएँ से रात्रि, रात्रि से कृष्णपक्ष, कृष्णपक्ष से दक्षिणायन होकर पितृलोक और चन्द्रलोक तक पहुँचते हैं।
🔹 वहाँ अपने पुण्य का भोग करते हैं, और पुण्य समाप्त होने पर पुनः पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।
📖 गीता ८.२५ –
“धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते॥”
👉 इस मार्ग से जाने वाले पुनः संसार में लौटते हैं।
4. जायस्व-म्रियस्व (जन्म-मरण का चक्र)
🔹 यह गति साधारण जीवों की है।
🔹 जीव अपने कर्मों के अनुसार –
✅ शुभ कर्म से देवयोनि
✅ पाप से नरक व दुःखदायी योनि
✅ मिश्रित कर्म से मनुष्य योनि
पाता है।
🔹 यही चौरासी लाख योनियों का जन्म-मरण का अंतहीन चक्र है।
🌼 निष्कर्ष 🌼
👉 मुक्ति का मार्ग केवल ब्रह्मज्ञान और ईश्वरप्रेम है।
👉 सकाम कर्म और साधारण जीवन जीव को पुनर्जन्म में बाँधे रखते हैं।
👉 गीता कहती है – “यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम” – जो मुझे पा लेता है, वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
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