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वामपंथियों !! खेल तो अब शुरू हुआ है...

वामपंथी इतिहासकारों की धज़्ज़ियाँ उड़ना अब शुरू हो चुका है.. क्योंकि लिखने वाले नए लड़के आ रहे हैं, जिनका विजन वैज्ञानिक भी है और तार्किक भी और सबसे बड़ी बात उनको भारतीय इतिहास-संस्कृति में भरोसा भी है। वामपंथियों !! खेल तो अब शुरू हुआ है... अहिंसा परमो धर्मः  धर्म हिंसा तथैव चः। धर्मो रक्षति रक्षितः। अर्थात्...... सत्य उद्घाटन : रावण द्वारा सीता हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था? उस मार्ग में कौनसा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है?? उस मार्ग के बारे में लाखों साल पहले कैसे जानकारी  थी??? पढ़ो इन प्रश्नों के उत्तर वामपंथी इतिहारकारों के लिए मृत्यु समान हैं| भारतबन्धुओ !  रावण ने माँ सीता का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटका), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुँचा|  आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं|  अर्थात् ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है| अब आप ये सोचिये उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता| फिर कैसे उस समय य

राम ने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली ?

मैं बचपन से ही रामायण का पाठ भी करता था और प्रभु राम को अपना आदर्श भी मानता था।  मगर जब कभी मेरे सामने कोई सवाल कर देता कि  "रामायण में तो नारी को ताड़ना के योग्य कहा गया है तब मैं निरूत्तर हो जाता।" (ढोल,गँवार, शूद्र,पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।)  जब कभी कोई सवाल कर देता कि  लंका विजय के बाद राम ने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली ?  राम तो खुद भगवान थे, उनको तो सीता के पवित्र होने ना होने की बात मालुम ही रही होगी।  यह तो सीता के बहाने समस्त नारी जगत का अपमान है।  ऐसे सवालों पर मैं निरूत्तर हो जाता।  मगर संत संगति जब भी मिलती तब मैं इस सवाल पर चर्चा जरुर करता।  बात सन 1992 की है।  मुझे प्रयागराज से कटनी जाना था। ट्रेन थी तिरुपति एक्सप्रेस जो वाराणसी से चलकर सुबह साढे दस बजे प्रयागराज पहुँचती थी। उस वक्त इस ट्रेन में सवारी नहीं के बराबर होती थी।  जिस डिब्बे में मैं चढा, उसी डिब्बे में दमोह के एक संत भी चढ़े। पूरे कोच में सिर्फ 5 सवारी थी। इत्तिफाक से मैं और वह संत जी आमने-सामने ही बैठ गये।  थोड़ी देर बाद संत जी से बातें शुरु हुईं तो मालुम हुआ कि वह रामायणी हैं अर्थात रामकथा कर

हनुमान जी का कर्ज़ा

*🕉️ ... हनुमान जी का कर्ज़ा ... 🕉️ राम जी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो कुछ दिन पश्चात राम जी ने विभीषण, जामवंत, सुग्रीव और अंगद आदि को अयोध्या से विदा कर दिया।  तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में विदा करेंगे, लेकिन राम जी ने हनुमान जी को विदा ही नहीं किया।  अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात है कि सब गए परन्तु अयोध्या से हनुमान जी नहीं गये। अब दरबार में कानाफूसी शुरू हुई कि हनुमान जी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता जी की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमान जी चले जायें। माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक-एक दिन एक-एक कल्प के समान बीत रहा था। वो तो हनुमान जी थे, जो प्रभु मुद्रिका ले के गये, और धीरज बंधवाया कि...! *कछुक दिवस जननी धरु धीरा।* *कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।* *निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।* *तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥* मैं तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो। अब बारी आई लखन जी की। तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था।  पूरा राम दल वि