कर्ण एक कपटी, नृशंस, कुचक्री और कायर व्यक्ति था।

महाभारत काल के पात्रों में अक्सर कर्ण का महिमामंडन किया जाता है। बहुतों का पसंदीदा पात्र है कर्ण। पर क्या कर्ण वाकई इस योग्य है?

कर्ण को अच्छा दिखाने के पीछे यही सोच काम करती है कि बेचारे को उसकी माँ ने बचपन में ही त्याग दिया था। यह एक अन्याय अवश्य हुआ है कर्ण के साथ। पर क्या इसके कारण किसी का पापी बनना न्यायसंगत माना जा सकता है? आज अगर कोई लावारिस हो, बचपन में उसकी माँ ने उसे कूड़े में फेंक दिया हो, और वह बड़ा होकर ताकत हासिल करने के बाद किसी स्त्री को भरे बाजार नंगा करे, किसी गुंडे का दाहिना हाथ बन जाये तो क्या आपके मन में उसके प्रति दया की भावना जन्म लेगी? 

शुरू से बात करते हैं। 

जनश्रुति है कि कौरवों (पांडव भी कौरव ही थे) के गुरु द्रोण ने कर्ण का गुरु बनने से मना कर दिया था। जबकि महाभारत ग्रन्थ में लिखा है कि जब भीष्म ने द्रोण को कुरु कुमारों का शिक्षक नियुक्त किया और द्रोण ने गुरुकुल की स्थापना की तो वहाँ कौरवों के अतिरिक्त वृष्णि और अंधक (यादव वंश), अनेक देशों के कुमार और राधानन्दन कर्ण ये सब द्रोण के पास शिक्षा लेने आए। कर्ण सदा अर्जुन से बैर रखता और दुर्योधन के साथ मिलकर पांडवों का अपमान करता (9, 10, 11, 12, अध्याय 131, सम्भवपर्व, आदिपर्व)। पांडव सूतपुत्र बोल कर अपमान नहीं करते थे। पर कर्ण क्या बोलकर अपमान करता होगा?  

यह अवश्य है कि धनुर्विद्या में अर्जुन अधिक पात्र साबित हुआ। जैसे गदायुद्ध में दुर्योधन और भीम, रथ संचालन में युधिष्ठिर, खड्गयुद्ध में सहदेव अधिक पात्र सिद्ध हुए। आप अध्यापक भले न रहे हों, कभी न कभी विद्यार्थी तो रहे ही होंगे। क्या आपकी कक्षा में अध्यापक ने सबको ही समान शिक्षा नहीं दी, और क्या विद्यार्थियों में से सब अलग-अलग श्रेणी में उत्तीर्ण नहीं होते? कर्ण उस योग्य था ही नहीं कि अर्जुन के समान शिक्षा ग्रहण कर पाता। 

कर्ण ने आगे की शिक्षा परशुराम से पाई। जैसे भीम और दुर्योधन ने बलराम से प्राप्त की। अर्जुन ने इंद्र इत्यादि देवताओं और महादेव से प्राप्त की। जैसे आपने प्राइमरी में किसी एक गुरु से मैथ्स पढ़ी, हाईस्कूल में किसी और गुरु से और हायर एजुकेशन में किसी और गुरु से। 

कर्ण पर दूसरा अन्याय यह कहा जाता है कि जब शिक्षा पूरी होने के बाद कुमारों की परीक्षा ली गई तो कर्ण को मौका नहीं दिया गया। पहली बात तो यह कि प्रदर्शन केवल कुरुकुमारों का था, सभी शिष्यों का नहीं (पुनः, कर्ण द्रोण का शिष्य था)। द्रोण के सभी शिष्यों का प्रदर्शन होता तो बाकी राज्यों के कुमार क्यों नहीं आए! एक भी यादव नहीं उतरा प्रदर्शन में, और तो और द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा भी तटस्थ रहा था। इसके बाद भी जब कर्ण ने प्रदर्शन करना चाहा तो उसे अनुमति मिली, उसने प्रदर्शन किया भी। लेकिन इसके बाद कर्ण ने जिद की कि अर्जुन अब उससे युद्ध करे और साबित करे कि वह श्रेष्ठ धनुर्धर है।  (6,7,  19-22, 23, 24, 25, 26, अध्याय 137, सम्भवपर्व, आदिपर्व।) 

हस्तिनापुर राजघराने के बच्चों का प्रदर्शन था, घर के लोगों के सामने। राज्य के राजकुमारों का प्रदर्शन था, राज्य के नागरिकों के सामने। प्रदर्शन था, कम्पटीशन या एक्जाम नहीं। आपके घर के बच्चे आपस में कुश्ती लड़ रहे हों, और कोई बाहर का बड़बोला लड़का आकर बोले कि मैं भी लड़ूंगा और घर के लड़के को पटक-पटक कर मारूंगा। क्यों भई?  

परन्तु जल्दी ही कर्ण को अपनी योग्यता दिखाने का पूरा मौका मिला। द्रोण ने गुरुदक्षिणा में काम्पिल्य के राजा द्रुपद को पकड़ लाने के लिए कहा। दुर्योधन, उसके सारे भाई, कर्ण और सारी सेना द्रुपद को पकड़ने गई, और हार गई। कर्ण लड़ाई छोड़कर भाग गया था। फिर केवल चार पांडवों ने काम्पिल्य की सारी सेना को हराकर द्रुपद को पकड़ लिया। 

युद्ध में हारना कोई लज्जा की बात नहीं है। पर भगौड़ा कर्ण मानसिक रूप से भी कोई वीर नहीं, अपितु कुचक्री, षड्यंत्रकारी था। वारणावत भेजने और लाक्षागृह के षड्यंत्र में कर्ण पूरी तरह शामिल था। (21, अध्याय 140; 1, 2, 3 अध्याय 141, जतुगृह पर्व, आदिपर्व।) 

द्रौपदी के स्वयंवर में कर्ण ने धनुष उठा लिया, पर द्रौपदी ने उसे मना कर दिया। इसे कर्ण पर अन्याय दिखाया जाता है। कोई यह नहीं सोचता कि वह 'स्वयंवर' था, स्वयंवर मतलब अपना वर चुनने की स्वतंत्रता। कर्ण अनाचारी, षड्यंत्रकारी सिद्ध हो चुका था, कायर सिद्ध हो चुका था, दुर्योधन जैसे अनाचारी का अनुयायी था, उसका कृपापात्र था। कोई स्त्री जीती मक्खी क्यों निगलेगी?

और जब अर्जुन ने लक्ष्यभेद किया तो वहाँ उपस्थित सारे राजा अर्जुन पर टूट पड़े। अर्जुन और भीम ने उनका विकट विरोध किया। उन हमलावर राजाओं के साथ कर्ण भी था। इतने राजाओं से लड़ चुके अर्जुन से कर्ण पराजित हो गया। अपनी हार मान कर युद्ध से हट गया। (16-22, अध्याय 189, स्वयंवर पर्व, आदिपर्व।)

कर्ण बहुत बड़ा बड़बोला था। जब दुर्योधन ने प्रस्ताव दिया कि छल से पांडवों में फूट डाल दी जाए, या अन्य उपायों से भीम को मार दिया जाए, तब कर्ण बोलता है कि वीरों को यह शोभा नहीं देता। सेना ले चलो और द्रुपद को हरा कर पांडवों को बंदी बना लो। जैसे कोई हलवा हो! द्रोण को गुरुदक्षिणा देने के समय सारे कौरव, कर्ण और पूरी सेना द्रुपद से पहले भी हार चुकी थी। फिर द्रुपद को पांडवों ने हरा दिया था। अब द्रुपद और पांडव साथ थे तो ये बड़बोला द्रुपद को हरा कर पांडवों को बंदी बनाने की बातें झोंक रहा था।

द्युत में पांडवों के हारने के बाद जब दुःशासन मात्र एक वस्त्र पहनी हुई द्रौपदी को खींच रहा था और द्रौपदी गिड़गिड़ा रही थी, तब दुःशासन द्वारा यह कहने पर कि तू चाहे रजस्वला हो, एकवस्त्रा हो या नँगी ही क्यों न हो, दासी है, हम जैसे चाहेंगे तुझे रखेंगे, तब कर्ण खिलखिला कर हँसा था। (34, 45, अध्याय 67, द्युतपर्व, सभापर्व।) 

कौरवों में अकेला विकर्ण जब इस घोर लज्जास्पद कर्म का विरोध कर रहा था तब कर्ण ने उसका तिरस्कार करते हुए द्रौपदी को वेश्या कहा। दुर्योधन या किसी अन्य कौरव ने नहीं, बल्कि इसी चरित्रवान कर्ण ने दुःशासन से द्रौपदी को नँगा करने के लिए कहा था। (27-38, अध्याय 68, द्युतपर्व, सभापर्व।) 
 
जब पांडव वन में चले गए तो और किसी ने नहीं, इसी महावीर कर्ण ने शकुनि से कहा कि जब ये तेरह वर्ष बाद वापस आएंगे तो फिर से जुआ खेल कर इन्हें फिर से वन में भेज देना। दुर्योधन को यह बात पसन्द नहीं आई तो बोला कि चलो सब लोग सेना लेकर चलते हैं और पांडवों की हत्या कर देते हैं। (13, 24, अध्याय 7, अरण्य पर्व, वनपर्व।)

यही कुचक्री था जिसने दुर्योधन को परामर्श दिया कि चलो, वन में जहाँ पांडव और द्रौपदी हैं, वहाँ अपना वैभव प्रदर्शित किया जाए। जब हमारी रानियाँ हीरे-मोती पहन कर, बढ़िया साड़ियाँ पहन कर चलेंगी तो द्रौपदी को समझ आएगा। मतलब सोच देखिए इसकी, सब कुछ छीन लेने के बाद इस प्रकार प्रताड़ित करना! और जब गन्धर्वों ने कौरवों पर हमला कर दिया, दुर्योधन को बंदी बना लिया तो ये उसका परममित्र दूसरे रथ पर कूदकर भाग गया। (32, अध्याय 241, घोषणपर्व, वन पर्व।) उन्हीं गन्धर्वों को बस दो पांडवों, अर्जुन और भीम ने हरा दिया। 

जब अज्ञातवास की समाप्ति पर कौरवों ने विराट नरेश के गौधन का अपहरण किया तब बृहन्नला बने अर्जुन ने विराट की ओर से युद्ध किया। कृप, द्रोण और भीष्म तक को हरा दिया। पहली बार हुआ था कि कर्ण और अर्जुन का प्रत्यक्ष युद्ध हुआ। कर्ण की वर्षों की मनोकामना पूर्ण हुई थी। और जानते हैं क्या हुआ? कर्ण एक दिन में दो बार अर्जुन से लड़ कर पीठ दिखा कर भागा। 

कर्ण बहुत बड़ा धनुर्धर समझता था खुद को। लेकिन महाभारत के युद्ध में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहे जाने वाले अर्जुन से नहीं, बल्कि भीम से एक ही दिन में चार बार हारा, और भाग गया। भीम से गदा युद्ध नहीं हुआ था, बल्कि धनुष-बाण की ही लड़ाई हुई थी।   

कर्ण एक कपटी, नृशंस, कुचक्री और कायर व्यक्ति था। 
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