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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हनुमान जी की शक्ति

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आज आपको  हनुमान जी एक लोक कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ, *जिसका विवरण संसार के किसी भी पुस्तक में आपको शायद ही मिलेगा..  जय श्री राम, *कथा का आरंभ तब का है ,,* जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,, की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,, उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,, और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,, सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,, और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,, बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,, उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,, जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,, रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,, अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,, और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,, अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,, हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,, अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,, एक

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है

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प्रश्न~ मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी*         *पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है❓*      *उत्तर ~* परम्परा हैं कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठना। क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है ?      आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर/व्यापार/राजनीति इत्यादि की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। इस लोक को मनन करें और आने वाली पीढ़ी को भी बताएं। श्लोक इस प्रकार है ~             *अनायासेन मरणम् ,*             *बिना देन्येन जीवनम्।*             *देहान्त तव सानिध्यम् ,*             *देहि मे परमेश्वरम्॥*       इस श्लोक का अर्थ है ~   *अनायासेन मरणम्* अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।   *बिना देन्येन जीवनम्* अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहाना पड़े। जैसे कि लकवा हो जा

हिन्दू_वेदनाओं_की_अंतहीन_कथा

*हिन्दू_वेदनाओं_की_अंतहीन_कथा*  *मुझे यात्राएँ करना पसंद है लेकिन मंदिरों में दर्शनों के लिये लगी भीड़ मुझे कभी भी पसंद नहीं थी पर पिछले कुछ वर्षों से न जाने क्यों मुझे लगता है कि हमारे जितने शक्ति-पीठ हैं, जितने ज्योतिर्लिंग हैं, जितने और दूसरे तीर्थ हैं मुझे उन सबका दर्शन करने के लिये अपने रिटायर होने और बूढ़े होने का इंतज़ार नहीं करना है बल्कि जल्द से जल्द उन सब जगहों पर माथा टेकना है। मुझे जल्दी इसलिये है कि कल शायद वो भी हमारी पहुँच से बहुत दूर हो जायेंगे।* *ऐसा एहसास इसलिये नहीं है कि मैं किसी गहरे निराशावाद का शिकार हूँ बल्कि इसलिये है क्योंकि पिछले कुछ सौ वर्षों के अनुभव और इतिहास ने मुझे ऐसा बना दिया है। लगभग हर पचास-सौ सालों में टूटता और सिमटता भारत तथा भग्नावशेष में बदलते मंदिर इसी बात की गवाही दे रहे है।* *भारतवर्ष का कटा-फटा मानचित्र देखकर मुझे जितनी पीड़ा होती है इसका बखान शायद शब्दों में कर पाना मेरे लिये असंभव है। ये पीड़ा तब और बढ़ जाती है जब मैं इन्टनेट पर कभी-कभी पाकिस्तान-अफगानिस्तान-मयांमार और बांग्लादेश घूमने चला जाता हूँ। यहाँ का हरेक शहर, हर नदी और हर पहाड़ मुझे एक अजी

हिन्दू धर्म के पौराणिक काल के सात रहस्यमयी व्यक्ति

हिन्दू धर्म के पौराणिक काल के सात रहस्यमयी व्यक्ति!!!!!     भारत चमत्कारों और रहस्यों से भरा देश है। भारत को देवभूमि कहे जाने के कई कारणों में से एक कारण यह ‍भी है कि यहां का दर्शन, धर्म और अध्यात्म सत्य सनातन है। इसके कारण ही दुनिया के अन्य धर्मों की उत्पत्ति हुई।  ऋग्वेद दुनिया का प्रथम ऐसा धर्म ग्रंथ है जिसमें दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, कृषि, मौसम, समाज, राजनीति आदि अनेक विषयों की गंभीर जानकारी सम्मलित है। भारत की सीमा हिमालय के कैलाश पर्वत से लेकर श्रीलंका तक और हिन्दुकुश की पहाड़ी से लेकर अरुणाचल की पहाड़ियों तक फैली है। नीचे अरुणाचल की पहाड़ियों से लेकर बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि तक फैली है।  इसी भारत में कालांतर में पहले जनपद हुआ करते थे अब राष्ट्र और भिन्न भिन्न धर्मों में यह क्षेत्र बंट गया है। यह संपूर्ण क्षेत्र रहस्य, रोमांच, प्राचीन इतिहास और अध्यात्मिक ज्ञान से भरा हुआ है।  आओ जानते हैं भारत के ऐसे सात रहस्यमयी व्यक्तियों के बारे में जिनमें से कुछ के बारे में आप शायद ही जानते होंगे।   'अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृप

भीष्म ने युधिष्ठिर को दिया था यह रहस्यमयी ज्ञान

भीष्म ने युधिष्ठिर को दिया था यह रहस्यमयी ज्ञान, आपने जान लिया तो आप कुछ सोचने पर विवश हो जायेंगे!!!!!!!! भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद हमें भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है, जिसे भीष्म नीति के नाम से जाना जाता है। भीष्म पितामह शर शय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था। इन 58 दिनों में भीष्म के समक्ष सभी संध्या को एकत्रित होते थे और उनसे ज्ञान की बाते सुनते थे। भीष्म ने इस दौरान राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म आदि का मूल्यवान उपदेश बड़े विस्तार के साथ दिया। इस उपदेश को सुनने से युधिष्ठिर के मन से ग्लानि और पश्‍चाताप दूर हो जाता है।   जब पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेते हुए थे तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा:- 'तुम्हारे मन में अशान्ति है। तुम भीष्मजी के पास जाओ और अपनी कठिनाई का वर्णन करो। धर्म का ज्ञान रखने वालों में भीष्म सबसे श्रेष्ठ हैं।  जब वे नहीं रहेंगे तो संसार ऐसा तमोमय हो जाएगा, जैसे चन्द्रमा के न रहने से रात्रि हो जाती है। भीष्म जीवन और मृत्यु के बीच लटक रहे हैं। जाओ, उनसे जो कुछ पूछना है, पूछ लो।' युधिष्ठिर, कृष्ण, कृ